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EU के प्रस्तावित चावल आयात प्रतिबंध: भारत और एशियाई निर्यातकों के लिए बढ़ सकती है मुश्किल

यूरोपीय संघ (EU) ने एशिया से आने वाले चावल पर नियंत्रण सख्त करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा दिया है। द हिंदू बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, ईयू अपने घरेलू किसानों और मिलर्स को प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए स्वचालित सेफगार्ड मैकेनिज़्म लागू करने की तैयारी में है। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब ईयू और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर बातचीत भी तेज़ी से आगे बढ़ रही है।

11 में से 23 अध्यायों पर सहमति बन चुकी है, लेकिन उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि ईयू “एक दरवाज़ा खोल रहा है और दूसरा बंद कर रहा है”, क्योंकि नए नियम FTA से मिलने वाले लाभों को कमजोर कर सकते हैं।

यूरोप के लिए नया सुरक्षात्मक ढांचा

प्रस्तावित प्रणाली के तहत, ईयू टैरिफ रेट कोटा (TRQ) लागू करेगा, जिसमें बासमती और नॉन-बासमती दोनों तरह के चावल शामिल होंगे। यदि आयात ऐतिहासिक औसत स्तर से अधिक हो जाता है, तो आयात पर स्वचालित रूप से ऊंचे शुल्क लागू हो जाएंगे। यह नई व्यवस्था 1 जनवरी 2027 से प्रभावी होने की संभावना है।

ईयू का दावा है कि गैर-ईयू देशों से चावल आयात तेजी से बढ़कर 15 लाख टन तक पहुंच गया है, जिसका बड़ा हिस्सा भारत, पाकिस्तान, कंबोडिया और म्यांमार से आता है।

भारत और पाकिस्तान पर सबसे बड़ा असर

नियम बदलने का सबसे बड़ा झटका भारत और पाकिस्तान को लग सकता है। दो दशक पहले ईयू के छिलके वाले चावल के आयात में इन दोनों देशों की हिस्सेदारी 90% तक थी। आज यह घटकर लगभग 50% रह गई है, लेकिन कुल निर्यात पांच गुना बढ़ चुका है।

ईयू ने कुछ देशों से आने वाले चावल में कीटनाशक अवशेषों और मानवाधिकार मुद्दों का भी हवाला दिया है, हालांकि उद्योग जगत इसे यूरोपीय किसानों के लिए संरक्षणवादी कदम मानता है।

मजबूत होता यूरोपीय राइस लॉबी का दबदबा

यूरोपीय चावल मिलर्स का गठजोड़—फेडरेशन ऑफ़ यूरोपियन राइस मिलर्स (FERM)—काफी समय से कठोर कदमों की मांग कर रहा है। इनमें शामिल हैं:

  • पैकेज्ड चावल पर अधिक शुल्क
  • छिलके वाले और मिल्ड चावल पर शुल्क चार गुना तक बढ़ाना
  • WTO ढांचे के तहत टैरिफ शेड्यूल में बड़े बदलाव

इसी के साथ आठ यूरोपीय देशों ने मिलकर हाल ही में EURice नाम का गठबंधन बनाया है, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन बढ़ाना और एशियाई आयात पर निर्भरता घटाना है। यह यूरोप के बढ़ते संरक्षणवाद की ओर इशारा करता है।

भारत के लिए आगे की राह कठिन

भारत को इस कदम से बड़ा नुकसान हो सकता है। ईयू को भेजे जाने वाले छिलके वाले चावल (5 लाख टन), टूटे चावल (6 लाख टन) और मिल्ड चावल (12 लाख टन) के निर्यात पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई छोटे और मध्यम निर्यातक अपने बाज़ार खो सकते हैं।

हालांकि, यह स्थिति भारतीय कंपनियों को यूरोप में प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए भी प्रेरित कर सकती है। दावत जैसी कंपनियां पहले ही नीदरलैंड में ऐसा मॉडल अपना चुकी हैं।

FTA वार्ताओं के बीच सरकार और उद्योग को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि नये सेफगार्ड और गैर-शुल्क बाधाएं भारत की यूरोपीय बाज़ार में पकड़ को कमजोर न करें।

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