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चावल में ज़हर की ख़ुशबू: बालाघाट (मध्य प्रदेश) में फ्लेवर बढ़ाने के नाम पर मिलाया जा रहा जानलेवा केमिकल

बालाघाट में चावल की मिलों में फ्लेवर और खुशबू बढ़ाने के नाम पर एक खतरनाक सच्चाई सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक, यहां के कई राइस मिलर प्रोपाइलीन ग्लाइकोल नामक रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल कर रहे हैं — वही रसायन जिसने छिंदवाड़ा में कफ सिरप में मिलकर 27 मासूम बच्चों की जान ले ली थी।

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस मामले की जांच अब शुरू हो गई है। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह रसायन चावल में कृत्रिम सुगंध डालने के लिए मिलाया जा रहा है। इसे ‘कलीमुच्छ’, ‘चिन्नौर’ और अन्य लोकप्रिय ब्रांड नामों से बाजार में बेचा जा रहा है।

केंद्रीय फूड एंड ड्रग कंट्रोलर के निर्देश पर जांच टीम ने बालाघाट पहुंचकर मामले की तहकीकात शुरू कर दी है। छिंदवाड़ा कफ सिरप त्रासदी के बाद कई दवा कंपनियां पहले से ही जांच के घेरे में हैं। अब चावल की मिलें भी शक के दायरे में आ गई हैं।

चौंकाने वाली बात यह है कि चिन्नौर चावल को जीआई टैग प्राप्त है और ‘कलीमुच्छ’ भी सीमित इलाकों में ही उगाया जाता है, लेकिन मिलर्स इन पर कृत्रिम खुशबू चढ़ाकर बड़े पैमाने पर बेच रहे हैं। प्रोपाइलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल रंग और प्रिज़रवेटिव के रूप में भी होता है।

कानून में इस तरह के रसायनों को खाद्य पदार्थों में मिलाने पर सख्त सज़ा का प्रावधान है, लेकिन ज़मीन पर इन नियमों का पालन शायद ही कभी होता है। सूत्रों के अनुसार, दिल्ली की एक कंपनी से यह रसायन खरीदा जा रहा है और बिना किसी तकनीकी विशेषज्ञ की सलाह के मनमाने ढंग से चावल में मिलाया जा रहा है।

जब यह मामला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनोज पांडे के सामने रखा गया तो उन्होंने कहा कि विभाग के पास रासायनिक जांच के लिए न तो तकनीकी संसाधन हैं और न ही प्रशिक्षित स्टाफ। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अब तक इस रसायन के उपयोग पर कोई ठोस जांच नहीं हुई है।

जांच एजेंसियों का कहना है कि यह मामला केवल खाद्य सुरक्षा का ही नहीं बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का भी गंभीर खतरा है। अगर जल्द कार्रवाई नहीं की गई तो यह ‘खुशबूदार ज़हर’ लोगों की थाली तक पहुंचकर एक और बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकता है।

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