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धान से धन तक का खेल: छत्तीसगढ़ में राइस मिलिंग घोटाले का पर्दाफाश, पूर्व IAS और कारोबारी पर गंभीर आरोप

छत्तीसगढ़ में बहुचर्चित राइस मिलिंग घोटाले में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने सोमवार को पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा और व्यवसायी अनवर ढेबर को आरोपी बनाते हुए पूरक आरोपपत्र दाखिल किया। यह 1,500 पन्नों का विस्तृत चार्जशीट रायपुर स्थित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विशेष अदालत में पेश किया गया।

EOW के अनुसार, दोनों आरोपियों — जो वर्तमान में रायपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं — के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (साजिश), 384 (जबरन वसूली), और 409 (आपराधिक विश्वासघात) के साथ-साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

EOW की जांच में खुलासा हुआ है कि अनिल टुटेजा ने छत्तीसगढ़ राइस मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रचते हुए कस्टम मिलिंग प्रक्रिया के दौरान मिलर्स से अवैध वसूली की व्यवस्था बनाई थी। इस कथित भ्रष्टाचार से उन्हें कम से कम ₹20 करोड़ का अनुचित लाभ हुआ, ऐसा आरोप है।

जांच रिपोर्ट के मुताबिक, मार्कफेड के जिला विपणन अधिकारियों (DMO) पर दबाव डालकर राइस मिलर्स के बिल रोक दिए जाते थे, ताकि वे भुगतान पाने के लिए ₹20 प्रति क्विंटल की दर से अवैध कमीशन देने को मजबूर हों।

EOW ने यह भी बताया कि अनवर ढेबर, जो कांग्रेस नेता एजाज ढेबर के भाई हैं और वर्ष 2022–23 में एक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति माने जाते थे, ने इस अवैध वसूली गई रकम को संग्रहित, प्रबंधित और खर्च करने में मुख्य भूमिका निभाई।

आयकर विभाग की रेड के दौरान मिले डिजिटल सबूतों से यह भी संकेत मिलता है कि ढेबर न केवल शराब घोटाले में शामिल थे, बल्कि लोक निर्माण विभाग (PWD) और वन विभाग जैसे अन्य सरकारी क्षेत्रों में भी उनका सीधा प्रभाव था।

EOW ने कहा कि इस मामले में अब भी कांग्रेस नेता रामगोपाल अग्रवाल और अन्य आरोपियों की जांच जारी है।

गौरतलब है कि टुटेजा और ढेबर को इससे पहले राज्य के शराब घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। इससे पहले, फरवरी 2025 में EOW ने इसी मामले में सीजी-मार्कफेड के पूर्व प्रबंध निदेशक मनोज सोनी और राइस मिलर्स एसोसिएशन के तत्कालीन कोषाध्यक्ष रोशन चंद्राकर के खिलाफ पहला आरोपपत्र दाखिल किया था।

राज्य की एजेंसी के मुताबिक, अब तक की जांच में लगभग ₹140 करोड़ की अवैध वसूली के साक्ष्य मिले हैं।

वहीं, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच रिपोर्ट के अनुसार, कुल ₹175 करोड़ के घोटाले को खरीफ विपणन वर्ष 2021–22 के दौरान अंजाम दिया गया, जब भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार सत्ता में थी।

ED का कहना है कि इस अवधि में धान की कस्टम मिलिंग के लिए राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले विशेष प्रोत्साहन (इंसेंटिव) को ₹40 प्रति क्विंटल से बढ़ाकर ₹120 प्रति क्विंटल कर दिया गया था। इसके बाद, मार्कफेड के अधिकारी और जिला विपणन अधिकारी (DMO) ने मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ सांठगांठ करके वसूली की योजना बनाई।

राइस मिलर्स पर दबाव डालने के लिए उनके बिल रोक दिए जाते थे, और केवल वही बिल पास किए जाते थे जिन्होंने नकद भुगतान किया हो। EOW के अनुसार, इस तरह पूरे राज्य के मिलर्स से भारी रकम नकद में वसूली गई, जिसे बाद में व्यक्तिगत लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया।

यह मामला छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक और राजनीतिक साख पर गंभीर सवाल खड़े करता है, और अब जांच का दायरा और भी विस्तृत होने की संभावना है।

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