टूटे चावल पर सरकार का ‘कसता शिकंजा’, हरियाणा मिलर्स नाराज़
हरियाणा सरकार ने गुरुवार देर रात 2025-26 के लिए नई कस्टम मिल्ड राइस (सीएमआर) नीति जारी कर दी। इसके बाद पूरे राज्य में चावल मिलर्स और डीलरों में नाराज़गी बढ़ गई है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि यह नीति ज़मीनी हकीकत से मेल नहीं खाती और इससे मिलर्स पर अतिरिक्त बोझ बढ़ जाएगा।
नई नीति में सबसे बड़ा बदलाव डिलीवरी में टूटे चावल की सीमा को 25 प्रतिशत से घटाकर केवल 10 प्रतिशत करना है। करनाल राइस मिलर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सौरभ गुप्ता ने कहा कि पॉलिशिंग और मिलिंग के दौरान टूटना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और इस सीमा को घटाने से बड़ी मुश्किलें खड़ी होंगी। उन्होंने सवाल उठाया कि शेष 15 प्रतिशत टूटे चावल का क्या होगा।
गुप्ता ने आगे कहा कि सरकार ने टूटे चावल की लागत का आकलन भी बहुत कम किया है। नई नीति में मिलिंग के लिए 2.23 रुपये प्रति क्विंटल, स्टोरेज के लिए 1.23 रुपये और पैकेजिंग के लिए 3.33 रुपये प्रति क्विंटल तय किए गए हैं। जबकि वास्तविक प्रोसेसिंग और हैंडलिंग की लागत करीब 25 रुपये प्रति क्विंटल आती है।
मिलर्स ने परिवहन सुविधा को लेकर भी असंतोष जताया है। उनका कहना है कि मंडियों से एफसीआई गोदामों तक धान पहुंचाने की जिम्मेदारी पूरी तरह उन पर डाल दी गई है। सौरभ गुप्ता ने आरोप लगाया कि सीजन के दौरान पर्याप्त गाड़ियां उपलब्ध नहीं होतीं और कई बार प्रशासन को फर्जी गाड़ियों के नंबर तक दिए जाते हैं, जिससे किसानों और मिलर्स दोनों को परेशानी झेलनी पड़ती है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुमान के मुताबिक, इस साल करीब 13.97 लाख एकड़ में धान की बुवाई होगी। मंडियों और खरीद केंद्रों में करीब 84 लाख मीट्रिक टन धान आने की उम्मीद है, जिसमें से लगभग 54 लाख मीट्रिक टन सरकारी खरीद होगी और करीब 36 लाख मीट्रिक टन चावल केंद्र सरकार के पूल में जाएगा।
नई नीति के अनुसार, मिलर्स को चावल की डिलीवरी चरणबद्ध तरीके से करनी होगी। दिसंबर 2025 तक 15 प्रतिशत, जनवरी 2026 तक 25 प्रतिशत, फरवरी तक 20 प्रतिशत, मार्च तक 15 प्रतिशत, मई तक 15 प्रतिशत और शेष 10 प्रतिशत 30 जून तक देना होगा। केंद्र सरकार ने इस साल सामान्य धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,369 रुपये और ग्रेड ‘ए’ धान का 2,389 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
मिलर्स ने यह भी मांग की है कि सीएमआर डिलीवरी के लिए पास के एफसीआई गोदाम आवंटित किए जाएं। उनका कहना है कि पिछले दो सीजन से उन्हें दूर-दराज़ के गोदामों में भेजा जा रहा है, जिससे समय और खर्च दोनों बढ़ रहे हैं।
हालांकि, मिलर्स ने नीति के एक प्रावधान का स्वागत भी किया है। उन्होंने कहा कि सीएमआर डिलीवरी की अंतिम तारीख 30 जून तक बढ़ाए जाने से उन्हें थोड़ी राहत मिली है।